1- प्राणायाम 2- अकाल 3- रोटी 4- सिकन्दर 5- सफलता
6- बाल विवाह 7- कर्म 8- कटौती 9- साँचा 10- उल्कापात 11- चींटी और कबूतर
12- दोस्ती 13- समय 14- कलियुग 15- बँटवारा 16- कुर्सी
17- चीर हरण 18- विशव-शान्ति 19- बिजली 20- विद्यार्थी 20-a- बेर
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21- न्याय 22- अधूरा चाँद 23- नववर्ष 24- जागरूकता 25- पुण्य
26- ईद 27- नागपंचमी 28- पी-एच.डी. 29- दशहरा-१ 30- दीपावली-१
31- भजिया 32- सीमेन्ट 33- बहन 34- खेत 35- सयानी
36- रानी 37- आँकड़ा 38- व्ही. आर. एस. 39- सुनामी लहरें 40- जाँच
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41- चलता पुर्जा 42- आकलन 43- आत्मसम्मान 44- शिक्षक दिवस 45- बिल्ली
46- जल्लाद 47- वारंट 48- दाढ़ी 49- अभागे 50- माँ-बाप
51- अतिक्रमण 52- आत्मसमर्पण 53- टेसू 54- रोजगार 55- खाद
56- बोझ 57- दाँती 58- गुलाल 59- बदलाव 60- उदारता
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61- सच्चाई 62- बल्ब 63- मौत लहर 64- दबे पाँव 65- फागुन
66- पाखण्ड 67- परिवर्तन 68- दशहरा-2 69- दीपावली-2 70- कौमी एकता
71- बदलाव-2 72- अंतर 73- बाबू 74- प्रजातंत्र 75- वैभव
76- परम्परा 77- सफाई 78- पानी-फेरना 79- आँसू 80- भाग्य
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81- जीत 82-दर्शन 83- शामिल 84-गंदी मछली 85-मतलब
86- बढ़वा 87- आशा 88- दुर्लभ-प्रजाति 89- शर्म 90- परख
91- प्रगति 92- परिभाषा 93- गणेश चतुर्थी 94- दुर्घटना 95- विकलांग वर्ष
96- मतदान 97- सच्चाई-२ 98- सायफन 99- बचाव 100-लज्जा 101- लकीरें
102- धरातल 103- स्मृति 104- योग 105- साधना 106- जुआँ 107- हैजा
108- पानी 109- बाढ़ 110- पहुँच 111- सूखा 112- सूली 113- सज़ा
****** समाप्त *****
6 comments:
आज का दिन मुझ हिन्दी प्रेमी के लिए सुखद रहा । इसके पीछे जगदीश जी की मेहनत से 'शब्द प्राणायाम कविताएँ'से गुजरने को मैं क्यों न मानूं । रचनाकार ने अपनी नुकीली क्षणिकाओं के माध्यम से समाज के सारी विकृतियों की ओर इशारा किया है । रचनाकार की दृष्टि में वैविध्यता साफ़-साफ़ देखी जा सकती है । दृष्टि में कई कोणों का होना रचनाकार के अनुभव संसार में विविधता का भी प्रमाण है । सबसे बड़ी बात यहाँ क्षणिकाएं किसी अख़बार की फीलर्स की तरह नहीं रचे गये हैं । यहाँ उनमें भाषा की धार भी है । शाब्दिक कला कौशल भी है । इसे हम उनकी अभिव्यक्ति का चातुर्य भी कह सकते हैं । यह अलग बात है कि समग्र रचनाओं का मूल टोन सधा हुआ है किन्तु कहीं-कहीं चलताऊ भाषा के कारण साहित्य की आत्मा के प्रति न्याय नहीं माना जा सकता है । शायद यहीं कारण रहा है कि हमारे साहित्य मनीषियों ने क्षणिकाओं को शुरू-शुरू में एक पृथक विधा के रूप में मान्यता नहीं दी थी । जो आज स्थापित विधा है । रचनाकार को इसलिए भी बधाई कि वे अब वैश्विक जगत में पढ़े जायेंगे । मेरी दृष्टि में यह हिन्दी के विकास में (खासकर अंतरजाल के माध्यम से)मील का पत्थर जैसा है क्योंकि यह कृति प्रथम-प्रथम है जो संपूर्णतः अंतरजाल पर है । रचनाकार के साथ-साथ चित्रकार को मैं धन्यवाद देना चाहूँगा कि उनकी तुलिका ने यहाँ कमाल कर दिखाया है । कई बार होता यह कि जिसे शब्द नहीं खोल पाते उसे छवियाँ खोल देती हैं । इस प्रस्तुति से जुड़े सभी मित्रों को मैं छत्तीसगढ़ राज्य की संस्था 'सृजन-सम्मान' की ओर से भी बधाई देना चाहूंगा कि उन्होने हिन्दी की ज़मीन को मजबूत करने में अपनी ऊर्जा को रेखांकित की है ।
जयप्रकाश मानस/ सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ
शब्द प्राणायाम को देखकर सुखद आश्चर्य हो रहा है कि हरदा भी अब वेब पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। रमेशकुमार भद्रावले को साधुवाद। चित्रो सहित इस संग्रह को नेट पर देखना बहुत अच्छा लगा।
डॉ॰ दिनेश पाठक 'शशि'
It was quite interesting.I am pleased with your great work and hope you progress a lot in future.
Really Shabdpranayam is a very good website.
- Prasoon Trivedi
www.prasoontrivedi.blogspot.com
I enjoyed.
I enjoyed.
दिखाए शब्द प्राणायाम
जीवन के सब आयाम
डूबे रस की अनुभूति मे
पढ़े जो खास या आम
स्वस्थ रहता साहित्य
जब करते शब्द प्राणायाम...
बहुत बहुत धन्यवाद...
डॉ.राजकुमार पाटिल,पांडिचेरी
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